तहजीब हाफी शायरी ग़ज़ल गली से कोई भी गुज़रे चौंक उठता हु
गली से कोई भी गुज़रे तो चौंक उठता हु
नये मकान में खिड़की नहीं बनाऊंगा
मैं दुश्मनों से जंग अगर जीत भी जाऊ
तो उनकी औरते कैदी नहीं बनाऊंगा
फरेब दे कर तेरा जिस्म जीत लू लेकिन
मैं पेड़ काटके कश्ती नहीं बनाऊंगा
तुम्हे पता तो चले बे जबान चीज का दुःख
मैं अब चराग की लौ ही नहीं बनाऊंगा
मैं एक फिल्म बनाऊंगा अपने सर्वत पर
उसमे रेल की पटरी नहीं बनाऊंगा
Tehzeeb Haafi Gazal Gali Se Koi Bhi Guzre Chaunk
Gali se koi bhi guzre to chaunk uthta hu
Naye makaan me khidki nahi banaunga
Main dushmano se jang agar jeet bhi jau
To unki aurte kaidi nahi banaunga
Fareb dekar tera jism jeet lu lekin
Main ped kaant ke kashti nahi banaunga
Tumhe pata to chale be jaan cheez ka dukh
Main ab charag ki lau hi nahi banaunga
Main ek Film banaunga apne sarwat par
Usme rail ki patri nahi banaunga
मैं एक फिल्म बनाऊंगा अपने सर्वत पर
ReplyDeleteउसमे रेल की पटरी नहीं बनाऊंगा
ISKA MEANING NAHI SMJ AAYA
ReplyDeleteये मैने कब कहा के मेरे हक मे फैसला करे
अगर वो मुझसे खुश नही है तो मुझे जुदा करे
मै उसके साथ जिस तरह गुजारता हुं जिंदगी
उसे तो चाहिये के मेरा शुक्रिया अदा करे